लीवर प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) रोगग्रस्त लीवर को किसी अन्य व्यक्ति के स्वस्थ लीवर से बदलने की प्रक्रिया (एलोग्राफ्ट) है। ऑर्थोटोपिक प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) लीवर प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट) की सबसे आम तकनीक है जिसमें प्राप्तकर्ता के लीवर को निकाल दिया जाता है और मूल लीवर के संरचनात्मक स्थान पर दाता द्वारा दिए गए लीवर को प्रतिस्थापित किया जाता है। आज, लीवर प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) को विभिन्न प्रकार के अंतिम चरण के लीवर रोगों और तीव्र लीवर विफलता के उपचार के लिए एक व्यवहार्य विकल्प माना जाता है।
लीवर प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) को एक जीवन रक्षक प्रक्रिया माना जाता है क्योंकि यह कुछ प्रमुख जानलेवा लीवर की बीमारियों का सफलतापूर्वक प्रबंधन करता है। उदाहरण के लिए, लीवर सिरोसिस को कभी लाइलाज बीमारी माना जाता था; हालाँकि आज, समय पर व्यवस्थापन करने से इसका सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है।
एचसीजी में, प्रत्येक मरीज़ को लीवर के कार्यों को फिर से बहाल करने के लिए विशेषज्ञद्वारा व्यक्तिगत उपचार योजना तैयार करने से पहले मरीज़ का ध्यानपूर्वक मूल्यांकन किया जाता हैं। विशेषज्ञों को मरीज़ को प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) की आवश्यकता है या नहीं यह निर्धारित करने के लिए प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) मूल्यांकन की आवश्यकता होती है। मूल्यांकन में मरीज़, उसकी देखभाल करने वाले लोग और प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) टीम के बीच व्यापक चिकित्सा परीक्षण और उपचार योजना के संदर्भ में चर्चा शामिल होती है। इसके अलावा, मरीज़ की मौजूदा चिकित्सा स्थितियों और नियोजित प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) पर होने वाले उनके प्रभाव का अध्ययन करने के लिए सामान्य जांच भी की जाती है। एचसीजी में, हम जो भी उपचार या व्यवस्थापन की योजना बनाते हैं, वह न केवल मरीज़ की स्थिति का इलाज करते है बल्कि उसके जीवन की गुणवत्ता को भी बरकरार रखते है। लीवर को नुकसान पहुंचाने वाले रोग तीव्र और क्रोनिक दोनों तरह की लीवर की विफलता के मामलों में लीवर प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) आवश्यक हो जाता है। निम्नलिखित बीमारियां लीवर को नुकसान पहुंचाती है:
लीवर प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) को दाता के आधार पर दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:
मृत दाता से प्रत्यारोपण (डिसीज्ड डोनर लीवर ट्रांसप्लांटेशन) के लिए, मरीज़ को उसके रक्त समूह के अनुसार जोनल समन्वय समिति द्वारा सूचीबद्ध किया जाना चाहिए, जो कि लीवर प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) की सुविधा प्रदान करने वाले अस्पतालों के बीच कैडवर लीवर के उचित वितरण के लिए जिम्मेदार है। जब लीवर उपलब्ध होगा, अस्पताल द्वारा मरीज़ को उसके अनुसार सूचित किया जाएगा और मरीज़ की सहमति पर विशेषज्ञ टीम प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) की तैयारी करेगी।
आमतौर पर प्रतीक्षा अवधि कुछ महीनों तक लंबी हो सकती है। दुर्भाग्य से, हेपेटोकेल्युलर कार्सिनोमा (एचसीसी) वाले मरीज़ रोग की आक्रामकता के कारण इतना लंबा इंतजार नहीं कर सकते। ऐसे मामलों में, जब दाता उपलब्ध नहीं होते हैं, तब विशेषज्ञ कम से कम चिरफाड वाली प्रक्रियाएं, जैसे की टीएसीई, टीएआरई या आरएफए के माध्यम से रोग के विकास में देरी करते हैं। कुछ मामलों में, लीवर को ब्रेन डेड डोनर से काटा जाता है, जिसका परिवार अंग दान करने के लिए तैयार होता है। इस तरह से काटे गए लीवर को उपयुक्त उम्मीदवार को प्रत्यारोपित किया जाता है। आमतौर पर, पूरे लीवर को एक ही प्राप्तकर्ता को प्रत्यारोपित किया जाता है या दो रोगियों की मदद के लिए इसे दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।
जीवित दाता लीवर प्रत्यारोपण (लिविंग डोनर लीवर ट्रांसप्लांटेशन) एक प्रकार का लीवर ट्रांसप्लांट है, जिसमें जीवित संबंधित दाता (डोनर) से लीवर का एक हिस्सा निकाल दिया जाता है और जो मरीज लीवर ट्रांसप्लांट की तलाश में है उसको ट्रांसप्लांट किया जाता है। ये प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) मृत दाता से प्रत्यारोपण (डिसीज्ड डोनर लीवर ट्रांसप्लांटेशन) के समान ही सफल होता हैं। यह उन रोगियों के स्वास्थ्य में गिरावट और मृत्यु के जोखिम को भी कम करता हैं जिन्हें अन्यथा अगले उपलब्ध मृत दाता अंग के लिए सूची में इंतजार करना पड़ता है।
संभावित दाताओं को प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) टीम द्वारा किए गए गहन मूल्यांकन से गुजरना पड़ता है। मूल्यांकन में रक्त परीक्षणों की श्रृंखला, अल्ट्रासाउंड, एक्स-रे आदि जैसे इमेजिंग परीक्षण और प्रक्रिया के बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त करने के लिए विशेषज्ञ के साथ परामर्श शामिल है।
जीवित दाता (लिविंग डोनर) की आयु 18 से 50 वर्ष के बीच होनी चाहिए
दाता प्राप्तकर्ता का खून का रिश्तेदार या जीवनसाथी होना चाहिए (संबंध का आकलन करने के लिए नियमित रूप से एचएलए टाइपिंग की जाती है)।
प्रथम श्रेणी के रिश्तेदारों को दान के लिए अस्पताल के भीतर एक समिति द्वारा मंजूरी मिल सकती है। हालांकि, किसी भी दुय्यम- श्रेणी के रिश्तेदार को राज्य सरकार से मंजूरी लेनी होगी।
प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) समन्वयक मार्गदर्शन प्रदान करके परिवार की सहायता करेगा, लेकिन यह ध्यान रखना होगा कि मंजूरी प्राप्त करने का दायित्व केवल परिवार का ही है और अस्पताल की टीम मंजूरी प्राप्त करने में शामिल नहीं होगी।
जीवित दान (लिविंग डोनेशन) पूरी तरह से स्वैच्छिक होना चाहिए
मूल्यांकन और दान के दौरान दाता की सुरक्षा को प्राथमिकता है
अगर मूल्यांकन के संबंध में कोई चिंता या समस्या है जिसे संबोधित करने की आवश्यकता है या उसका हृदय परिवर्तन हो जाए और वह दान नहीं करना चाहे तो यह दाता की जिम्मेदारी है कि वो यह बात टीम को बताएं
किसी भी समय, यदि सर्जन को लगता है कि दाता एक अनुरुप दाता नहीं हो सकता है, तो वह प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ायेगा क्योंकि दाता की सुरक्षा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।
एक बार परीक्षण और परामर्श पूरा हो जाने के बाद, प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) टीम परिणामों की समीक्षा करने के लिए बैठक करेगी। यदि कोई विपरीत संकेत नहीं हैं, तो प्राप्तकर्ता को आगे की प्रक्रिया के लिए तैयार किया जाता है; अन्यथा, उसे लीवर प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) के लिए प्रतीक्षा सूची में रखा जाएगा।